जब तुम भी होगी बुढ़िया,
मुझको भी बूढ़ा पोगी न!
ऐ मेरी प्राणों से प्यारी,
तब भी प्रीत निभाओगी न!!
वक़्त बड़ा वो बेरहम होगा,
आँखों से दिखना कम होगा,
नयनों की ज्योति कम होगी,
तब भी नयन मिलाओगी न!
हर रूप में शरीर ख़म होगा,
अंग-अंग में कम्पन होगा,
तब भी अपने हिलते हाथ से,
हाथ मेरा थाम पाओगी न!
ढीले होंगे अंग दमकते,
गिरने लगेंगे दांत चमकते,
मुंह में तेरे दांत न होंगे,
तब भी हँस के दिखोगी न!
जीवन के उस कटु सफ़र पे,
सफ़ेद आ जायेंगे सर पे,
तब भी प्यार से मेरे मुंह पर,
अपने केश लहराओगी न!
छिन जाएगी लाली अधर से,
झुकने लगेंगे दोनों कमर से,
तब ले अधरों पर माधुर्य,
मुझको गले लगाओगी न!
इतना बूढ़ा हो जाऊँगा,
कि मैं चल भी न पाऊंगा,
अपने तन से बौझित पावों पर,
मुझ तक चल कर आओगी न!
ढलती उम्र का होगा वो कहर,
पड़ा हूँगा मैं जब शय्या पर,
बूढी गोद में रख मेरा सर,
तब भी यूंही सहलाओगी न!
वक्त आखरी जब आएगा,
और मुझको लेकर जायेगा,
अंत घड़ी के उस अवसर पर,
बाहों में भर जाओगी न!
ऐ मेरी प्राणों से प्यारी,
तब भी प्रीत निभाओगी न!!