सोमवार, 14 नवंबर 2011

मैं कितना लाचार बनाया / Main Kitna Lachar Banaya

(बाल-दिवस पर विशेष)

मैं कितना लाचार बनाया!
अच्छा था बीमार बनाया!!

छीन लिया मेरा भोलापन,
और मुझको हुशियार बनाया!

मै काग़ज था, नाव बना था,
पर तुमने अख़बार बनाया!

मैने ढाल बनाया था दिल,
तुमने दिल तलवार बनाया!

मेरे मन में सुखद स्नेह था,
पीड़ा-दायक प्यार बनाया!

और 'नमन' क्या बोलूं ज्यादा ,
फूल बना था, ख़ार बनाया!!

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

यही चाह / Yahi Chah

समस्त बाधाओं को समाप्त करने
हर पीड़ा का निवारण करने
मेरे रुकते जीवन को गति देने
हर सीमा को लाँघ कर
तुम उतर आओगी
मेरे जीवन में,
मेरे मन-उपवन में!

मन कुछ उदास भी है
एक हलकी -सी प्यास भी है
और....और...
तुमसे एक आस भी है.....
कि....कि....तुम
करोगी ये अनुकम्पा
ये अहसान
ये मेहरबानी
कि बन कर
एक मदमस्त नदिया
आन गिरोगी
मेरे हृदय के लघु-सागर में!

सर्वत्र होगा-
प्रेम, चाह
तुम्हारा मन-मोहक स्वरुप
और
उसी दृश्य के एक भाग में
हूँगा मैं......
एक पागल की भांति
खोया-खोया!

पुलकित मन
हर्षित आत्मा
रोमांचित रोम-रोम
रेशा- रेशा!

हाँ! ठीक ऐसा!
ठीक ऐसा ही होगा
जब मिलोगी तुम
मुझसे आकर-

कुछ हया
कुछ वफ़ा
कुछ आह
एक नई राह!
यही चाह,
बस! यही चाह!!

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

एक झलक / Ek Jhalak

*_*
*_*
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

वक्ष गिरी मुख चन्द्र, केश बन गए थे बदरी,
मुस्कान मंद स्वच्छंद छवि, आँखें कजरी!
कुछ डरी-डरी,ज्यों यौवन-गगरी,
जाए न छलक, जाए न छलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

आई नज़र पल-भर को जो वो कमर-कुमारी,
धड़कन धड़की धड़क, खिली ह्रदय-फुलवारी!
भर ठंडी आह, आह बोली,
कहाँ लोप रही वो आज़ तलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

अंग-अंग अंगड़ाई के बिन ही अंगड़ाता,
अंग-अंग स्वच्छंद भला किसको नहीं भाता!
अंग-अंग इंगित करता,
हर-एक के सीने में दलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

मंद पवन में मंद-मंद चुनरी लहरा कर,
चली गई पल में, ह्रदय में टीस उठा कर!
उससे मिलने की ह्रदय को,
अब हर पल रहे लगी ललक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

(कविता संग्रह "प्रथम-प्रेम पाती" से)

बुधवार, 2 नवंबर 2011

बाद में / Bad Me

जिस दिन से मैंने किये साल अठारह पार
घर वाले और बाहर वाले पीछे पड़ गए यार

जेब में गोत्र लिए फिरते हैं
शादी के चर्चे करते हैं

मैं कहता हूँ- मुझे नौकरी पार लग जाने दो पहले
लेकिन बातों में तो वो सब मारते हैं नहले पर दहले

कहते हैं- अच्छा रिश्ता है, दहेज़ में खूब मिलेगा माल
नौकरी की भी मांग नहीं है कर लेना चाहे अगले साल

अब मैं इन सब बातों से बचता रहता हूँ
कोई ज़िक्र करे तो उसको ये कहता हूँ-

बिना नौकरी कर लूं शादी
ऐसा मैं भी नहीं अनाड़ी!
पहले पांव पे खड़ा तो हो लूँ
बाद में मारूंगा कुल्हाड़ी!!