शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

तब भी प्रीत निभाओगी न / Tab Bhi Preet Nibhaogi Na

जब तुम भी होगी बुढ़िया,
मुझको भी बूढ़ा पोगी न!
ऐ मेरी प्राणों से प्यारी,
तब भी प्रीत निभाओगी न!!

वक़्त बड़ा वो बेरहम होगा,
आँखों से दिखना कम होगा,
नयनों की ज्योति कम होगी,
तब भी नयन मिलाओगी न!

हर रूप में शरीर ख़म होगा,
अंग-अंग में कम्पन होगा,
तब भी अपने हिलते हाथ से,
हाथ मेरा थाम पाओगी न!

ढीले होंगे अंग दमकते,
गिरने लगेंगे दांत चमकते,
मुंह में तेरे दांत न होंगे,
तब भी हँस के दिखोगी न!

जीवन के उस कटु सफ़र पे,
सफ़ेद आ जायेंगे सर पे,
तब भी प्यार से मेरे मुंह पर,
अपने केश लहराओगी न!

छिन जाएगी लाली अधर से,
झुकने लगेंगे दोनों कमर से,
तब ले अधरों पर माधुर्य,
मुझको गले लगाओगी न!

इतना बूढ़ा हो जाऊँगा,
कि मैं चल भी न पाऊंगा,
अपने तन से बौझित पावों पर,
मुझ तक चल कर आओगी न!

ढलती उम्र का होगा वो कहर,
पड़ा हूँगा मैं जब शय्या पर,
बूढी गोद में रख मेरा सर,
तब भी यूंही सहलाओगी न!

वक्त आखरी जब आएगा,
और मुझको लेकर जायेगा,
अंत घड़ी के उस अवसर पर,
बाहों में भर जाओगी न!

ऐ मेरी प्राणों से प्यारी,
तब भी प्रीत निभाओगी न!!

सोमवार, 14 नवंबर 2011

मैं कितना लाचार बनाया / Main Kitna Lachar Banaya

(बाल-दिवस पर विशेष)

मैं कितना लाचार बनाया!
अच्छा था बीमार बनाया!!

छीन लिया मेरा भोलापन,
और मुझको हुशियार बनाया!

मै काग़ज था, नाव बना था,
पर तुमने अख़बार बनाया!

मैने ढाल बनाया था दिल,
तुमने दिल तलवार बनाया!

मेरे मन में सुखद स्नेह था,
पीड़ा-दायक प्यार बनाया!

और 'नमन' क्या बोलूं ज्यादा ,
फूल बना था, ख़ार बनाया!!

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

यही चाह / Yahi Chah

समस्त बाधाओं को समाप्त करने
हर पीड़ा का निवारण करने
मेरे रुकते जीवन को गति देने
हर सीमा को लाँघ कर
तुम उतर आओगी
मेरे जीवन में,
मेरे मन-उपवन में!

मन कुछ उदास भी है
एक हलकी -सी प्यास भी है
और....और...
तुमसे एक आस भी है.....
कि....कि....तुम
करोगी ये अनुकम्पा
ये अहसान
ये मेहरबानी
कि बन कर
एक मदमस्त नदिया
आन गिरोगी
मेरे हृदय के लघु-सागर में!

सर्वत्र होगा-
प्रेम, चाह
तुम्हारा मन-मोहक स्वरुप
और
उसी दृश्य के एक भाग में
हूँगा मैं......
एक पागल की भांति
खोया-खोया!

पुलकित मन
हर्षित आत्मा
रोमांचित रोम-रोम
रेशा- रेशा!

हाँ! ठीक ऐसा!
ठीक ऐसा ही होगा
जब मिलोगी तुम
मुझसे आकर-

कुछ हया
कुछ वफ़ा
कुछ आह
एक नई राह!
यही चाह,
बस! यही चाह!!

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

एक झलक / Ek Jhalak

*_*
*_*
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

वक्ष गिरी मुख चन्द्र, केश बन गए थे बदरी,
मुस्कान मंद स्वच्छंद छवि, आँखें कजरी!
कुछ डरी-डरी,ज्यों यौवन-गगरी,
जाए न छलक, जाए न छलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

आई नज़र पल-भर को जो वो कमर-कुमारी,
धड़कन धड़की धड़क, खिली ह्रदय-फुलवारी!
भर ठंडी आह, आह बोली,
कहाँ लोप रही वो आज़ तलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

अंग-अंग अंगड़ाई के बिन ही अंगड़ाता,
अंग-अंग स्वच्छंद भला किसको नहीं भाता!
अंग-अंग इंगित करता,
हर-एक के सीने में दलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

मंद पवन में मंद-मंद चुनरी लहरा कर,
चली गई पल में, ह्रदय में टीस उठा कर!
उससे मिलने की ह्रदय को,
अब हर पल रहे लगी ललक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

(कविता संग्रह "प्रथम-प्रेम पाती" से)

बुधवार, 2 नवंबर 2011

बाद में / Bad Me

जिस दिन से मैंने किये साल अठारह पार
घर वाले और बाहर वाले पीछे पड़ गए यार

जेब में गोत्र लिए फिरते हैं
शादी के चर्चे करते हैं

मैं कहता हूँ- मुझे नौकरी पार लग जाने दो पहले
लेकिन बातों में तो वो सब मारते हैं नहले पर दहले

कहते हैं- अच्छा रिश्ता है, दहेज़ में खूब मिलेगा माल
नौकरी की भी मांग नहीं है कर लेना चाहे अगले साल

अब मैं इन सब बातों से बचता रहता हूँ
कोई ज़िक्र करे तो उसको ये कहता हूँ-

बिना नौकरी कर लूं शादी
ऐसा मैं भी नहीं अनाड़ी!
पहले पांव पे खड़ा तो हो लूँ
बाद में मारूंगा कुल्हाड़ी!!

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

दीपावली की मधुर रात / Deepawali Ki Madhur Raat

दीपावली की मधुर रात!
दीप-दीप विचरित होते
सब ले हाथों में हाथ!
दीपावली की मधुर रात!!

अनार फुहार बरखा भांति मन को हर्षाए
उड़-उड़ कर अतीष दामिनी-सम बन जाए
घन गर्जन करते रहते पटाखे साथ-साथ!
दीपावली की मधुर रात!

समा बंधा ज्यों उतर धरा पर गए सितारे
रंग बिरंगी तितली उड़े ज्यों पंख पसारे
ज्यों बगिया दे मन भावन फूलों की सौगात!
दीपावली की मधुर रात!

लिपा-पुता जगमग करता घर का पूजाघर
पूजन-भजन सभी करते हैं, संग में मिलकर
धुप, दीप, ताम्बूल, पुष्प, मिष्टान्न, पान का पात!
दीपावली की मधुर रात!

वो बच्चों की गूँज हाथ में वो फुलझड़ियाँ
भावना की डोर से बंधती मन की कड़ियाँ
आँखों ही आखों में करते मन से मन की बात!
दीपावली की मधुर रात!

एकरंग हो गये मिल कर दुनिया के सब रंग
एक हूँ मैं बेरंग ओ साथी तू न जिसके संग
तू न मेरे साथ, यही मेरी पीड़ा की बात!
पल-पल करती रही विरंची मुझपे कुठाराघात!!
दीपावली की मधुर रात!!

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

दिवाळी क्यूँ सै / Diwali Kyun Sai

इबकै इसी दिवाळी क्यूँ सै?
छात दीप तै खाल्ली क्यूँ सै??

न अम्बर आतीश गूंजता,
पट्टाख्यां की काल्ली क्यूँ सै?

एक भाई खात्तर भाई कै
दिल भित्तर कंगाल्ली क्यूँ सै?

काल़ा गात खून के छिट्टे,
रात इसी बदहाल्ली क्यूँ सै?

माँ नै बिन जाई आँख्यां म्हें
मौत की स्याही घाल्ली क्यूँ सै?

'नमन' रोज़ की घटना सै या
तेरे काळजै सल्ली क्यूँ सै??

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

मेरी कस्तूरी / Meri Kastoori

वो,
जो रहती है
हर पल
मेरे पास,

मेरी साँसों में,
मेरी धड़कन में,
मेरे सपनों में,
मेरे दिल में,
मेरी आहों में,
मेरे मन में!

मैं,
जो ढूंढ़ता हूँ
हर पल
कहीं दूर,

गावों में,
गलियों में,
गुलशन में,
कलियों में,
पनघट पे,
सखियों में!

वो,
जो बसी है
मुझ में ही!

मैं
अनजान
उसे ढूंढता हूँ
भटकता भी हूँ
ठीक,
एक मृग की तरह!

आख़िर,
क्यों न
भटकता रहूँ!

वो,
जो है
मेरी कस्तूरी!!

तेरी ये यादें / Teri Ye Yaden

मेरे दिल को पल में कर देती हैं खण्डहर
तेरी  ये  यादें  बवण्डर से  कम  नहीं!!

कहते हैं / Kahte Hain

कहते हैं- साथ हमारा देगा,
ये डूबते को किनारा देगा !
एक उम्मीद जगा देता है,
और तिनका क्या सहारा देगा....

जिस शख्स को / Jis Shakhsa Ko

जिस शख्स को बरसों-बरस से जानता था मैं...
अब लग रहा है कि केवल पहचानता था मैं!!

उन्वान क्या रखूँ / Unwan Kya Rakhoon

ज़ुबां ख़ामोश रहती है,
नज़र हर बात कहती है...
कहानी कौन-सी है ये?
कहो उन्वान क्या रखूँ??

हक़ / Haq

चाँद पर हक़ मेरा इतना है, उसको देख लेता हूँ !
उसे पाने की चाहत का भी मुझको हक़ मयस्सर कब?

अब / Ab

कोई पत्थर कहाँ से बने ताज अब,
हाथ कटते हमेशा हुनर के लिए!
कैसे उड़ने की हिम्मत परिंदा करे,
काट डाला जिसे बाल-ओ-पर के लिए!

मैं भला / Main Bhala

मैं भला क्या सुनता था तेरी बातों के सिवा!
मुझे अब याद क्या रहा तेरी यादों के सिवा?
.......................(प्रवेश गौरी 'नमन')

बेहिसी में ही / Behisee me hi

रूह तो मर जाती है जीते जी आजकल
कटती है सारी ज़िन्दगी बस बेहिसी में ही!

दोस्त मिलेंगे / Dost Milenge

दोस्तों कि चाह में दुश्मन मिले बहुत
अब दुश्मनों कि चाह करो दोस्त मिलेंगे! 

समझौता / Samajhauta

मुझको क्या चाहिए था मुझे क्या हुआ हासिल
जब भी खुद को समझाया मैं समझौता ही बन गया!

मेहरबानी / Meharbani

जी रहे थे हम अपनी हिस्सों में ज़िन्दगी
आप हिस्सा बने इसका मेहरबानी आपकी!!

कुछ खता / Kuchh Khata

कुछ खता हमसे हुई और कुछ निगाह-ए-यार से
देखते हैं आज हमको वो बेगानावार-से!

एक बार / Ek Baar

कर दे भले ही दूर वो पतंग कि तरह
एक बार आ के डोर जो वो थाम ले बहुत!

शिक्षा दी है / Shiksha Dee Hai

साधक को सदा ज्ञान की दीक्षा दी है! 
याचक को सदा प्रेम की भिक्षा दी है!! 
माँ, बहन, पत्नी, प्रिया, बेटी बन कर,
नारी ने हर एक रूप में शिक्षा दी है!!

गाँव की माटी / Ganv Ki Mati

मुझको कह रही है मेरे गाँव की माटी
घर न आ पर जहाँ रहे खुशहाल ही रहना

कुछ लोग / Kuchh Log

कुछ लोग डूब जाते हैं साहिल तलाशते
कुछ लोग डूबने को ही साहिल पे आते हैं!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

बड़ी तकलीफ़ होती है / Badi Takleef Hoti Hai

मत  दे  किसी  को  दिल,  बड़ी  तकलीफ़  होती है,
ये  मेरी  आँख  तेरी  याद  में  जगती  न  सोती है!
तेरी यादों के रेगिस्ताँ में, दिल सूखा सज़र समझो,
तेरी ख्वाहिश है जो इस रेत को पल-पल भिगोती है!!
.......................................... -प्रवेश गौरी 'नमन'

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

हर रात... / Har Raat...

हर रात...

आती है
तुम्हारा प्रतिरूप बन कर
कभी चांदनी,
तुम्हारे चेहरे-सी...
कभी अंधकारमय,
साया तुम्हारे केसों का......

तुम्हारे अधरों पर रही चुप्पी-सी
शांत!

हालात पैदा करती
ठीक तुम्हारे आने जैसे ही.....
दोनों पास-पास..
फिर भी तनहा....
निपट अकेले....

उभर आते हैं
हजारों अनपूछे प्रश्न-
तुम कभी कुछ क्यूँ न बोले?
मैंने भी लब क्यूँ न खोले?

इसी कशमकश में...
मैं निरुत्तर
तुम निरुत्तर
रात निरुत्तर!!
.....
द्वारा-प्रवेश गौरी 'नमन'


रविवार, 2 अक्तूबर 2011

Haryana Aur Haryanavi: भित्तर-भात्तर

Haryana Aur Haryanavi: भित्तर-भात्तर

भित्तर-भात्तर

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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

Sanskriti : Ek Vivechan

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bl izdkj Li’V gS fd ekuo thou ds leLr xrkuqxr vftZr laLdkjksa dh lef’V] ftlesa lkekftd vkpkj&fopkj] ioZ&R;kSgkj] jhfr&fjokt] /keZ] n”kZu] dyk] dkS”ky vkfn lekfgr gSa] laLÑfr gSA
………………………………………………………………………………..
lanHkZ %&
1- MkWŒ ehjk xkSre ( lwj dkO; esa yksd&n`f’V dk fo”ys’k.k ( i`Œ 51
2- lEikŒ] prqosZnh }kjdk izlkn “kekZ ( laLd`r “kCnkFkZ dkSLrqHk ( i`Œ 1147
3- lEikŒ] izksñjkepUnz ikBd ( HkkxZo vkn”kZ fgUnh “kCndks”k (  i`Œ 745
4- lEikŒ] MkWŒ /khjsUnz oekZ ( fgUnh lkfgR; dks”k ¼Hkkx&1½ ( i`Œ \
5- MkWŒ js[kk “kekZ ( gfj;k.kk ds yksd xhrksa eas HkfDrHkkouk  i`Œ 13
6- n;k d`’.k ,oa fot; oxhZ; *fot;* ( lkfgR; laLd`fr vksj ;qx&cks/k ( i`Œ 102]
7- jke/kkjh flag fnudj ( laLd`fr ds pkj v/;k; ( i`Π653
8- MkWŒ fot; cgknqj flag ( e/;dkyhu lkaLd`frd psruk ds fud’k ij lwj dkO; ( i`Œ 54
9- jhrk /kudj ( gfj;k.kk dk yksd laxhr ( i`Π18
10- MkWŒ t;Hkxoku xks;y ( gfj;k.kk % iqjkrRo] bfrgkl] laLd`fr] lkfgR; ,oa yksd okrkZ ( i`Œ15 ¼izkDdFku½
11- MkWŒ oklqnso “kj.k vxzoky ( okX/kkjk ( i`Œ 10
12- i`Foh dqekj vxzoky ( Hkkjrh; laLd`fr :ijs[kk ( i`Π1&2
13- “kkafrfiz; f}osnh ( /kjkry ( i`Œ 4
14- MkWΠxqykc jk; ( Hkkjrh; laLd`fr ( i`Π4
15- MkWΠjkeewfrZ f=ikBh ( vkfndkyhu fgUnh lkfgR; dh lkaLd`fr ih<+h dk v/;;u ( i`Π6
16- MkWŒ eueksgu “kekZ  ( Hkkjrh; laLd`fr vkSj lkfgR; ( i`Œ 1
17- MkWΠnsojkt ( Hkkjrh; laLd`fr ( i`Π20
18- MkWΠnsojkt ( Hkkjrh; laLd`fr ( i`Π21
19- MkWŒ nsojkt ( laLd`fr nk”kZfud foospu ( i`Œ 30
20- MkWŒ xq.kiky flag lkaxoku ( gfj;k.koh yksd xhrksa dk lkaLÑfrd v/;;u ( i`Œ 33
21- MkWΠuxsUnz ( lkdsr ,d v/;;u ( i`Π100
22- xSjksyk okpLirh ( Hkkjrh; laLd`fr vkSj dyk ( i`Π60
23- vkpk;Z gtkjh izlkn f}osnh ( lH;rk vkSj laLd`fr xzaFkekyk  ( i`Œ 13
24- jkgqy lkad`R;k;u ( cks/k laLd`fr ( i`Π3
25- MkWŒ ehjk xkSre ( lwj dkO; esa yksd&n`f’V dk fo”ys’k.k ( i`Œ 50
26- MkWŒ jkedqekj Hkkj}kt ( vk/;kfRedrk vkSSj gfj;k.koh laLÑfrcks/k ( i`Œ 9&10
27- txnh”k pUnz ( fujkyk dkO; esa lkaLd`fr psruk ( i`Œ 12
28- ;”knso “kY; ( laLd`fr % ekuo drZO; dh O;k[kk ( i`Œ 1&2

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

Rubaaiyan / रुबाइयाँ



..............रुबाइयाँ.........


श्रद्धा की गंगा, प्रेम की कालिंदी है,
भारत के भाल की चमकती बिंदी है!
जो एकता के सूत्र में बांधे है हमें,
वह भाषा कोई और नहीं हिंदी है!!
.
मस्तक पे लगे पूजा के चंदंन की तरह,
अधरों पे छपे प्रिया के चुम्बन की तरह!
क्या खूब सजी आज हिंद की दुल्हन,
हिंदी लगे सुहाग के कंगन की तरह!!
.
हिंदी ब्रज के गाँव की एक गौरी है,
हिंदी माता यशोदा की लौरी है!
प्रेमचंद की है सादगी हिंदी,
गाँव की धनिया, किसान होरी है!!

.......................(प्रवेश गौरी 'नमन')

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

रुबाइयाँ

..............रुबाइयाँ.........
.
श्रद्धा की गंगा, प्रेम की कालिंदी है,
भारत के भाल की चमकती बिंदी है!
जो एकता के सूत्र में बांधे है हमें,
वह भाषा कोई और नहीं हिंदी है!!
.
मस्तक पे लगे पूजा के चंदंन की तरह,
अधरों पे छपे प्रिया के चुम्बन की तरह!
क्या खूब सजी आज हिंद की दुल्हन,
हिंदी लगे सुहाग के कंगन की तरह!!
.
हिंदी ब्रज के गाँव की एक गौरी है,
हिंदी माता यशोदा की लौरी है!
प्रेमचंद की है सादगी हिंदी,
गाँव की धनिया, किसान होरी है!!
.
.......................(प्रवेश गौरी 'नमन')

रविवार, 28 अगस्त 2011

लिया आज अन्ना ने अन्न

जन-गण-मन है आज प्रसन्न
लिया आज अन्ना ने अन्न!
.
१२ दिन का वो अन्न-त्याग
नेताओं की भागम-भाग
दिल्ली गाए अपना राग
लहराए जनता परचम
लिया आज अन्ना ने अन्न!
.
शाही माता हो बीमार
चली सात दरिया के पार
इधर चिंघाड़े राजकुमार
राजा की नब्जें मध्यम
लिया आज अन्ना ने अन्न!
.
अन्ना बिल जब पास हुआ
जनता में उल्लास हुआ
उल्लासित आकाश हुआ
जन-गण ने छेड़ी सरगम
लिया आज अन्ना ने अन्न!
......(प्रवेश गौरी 'नमन')

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

एक-एक बदला लेना है

एक-एक बदला लेना है, संसद के गद्दारों से
अपने हाथ कटाते आये, हम अपने हथियारों से!
हमने ख़ुद अपने हाथों से, जिसको अपना राज दिया,
उनके आगे हाथ पसारें, हम ख़ुद ही लाचारों-से!!

ओए क्या बात हो गयी

छुप गए नेता सारे ओए क्या बात हो गयी
अन्ना जी जो पधारे करामात हो गयी!!
.
मुरली मनमोहन
न गाए तराने
सोनी के नखरे भी पुराने!
एक वो दिन था के रोज़ नए गाने थे
सजते रात और दिन में मयखाने थे
जाम बने अंगारे ओए क्या बात हो गई
जैसी करनी की वैसी हालात हो गयी!!
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अम्बुआ की डाली
पे सोनी मतवाली
मोहन कर रहे रखवाली
महाभारत में रामायण का भी आना हुआ
शासक को बनवास का करना बहाना हुआ
सिंह भरत पादुका सम्भारे ओए क्या बात हो गई?
सिंह जी अब कर लो छुट्टी, पूरी जमात हो गई!!
.
छुप गए नेता सारे ओए क्या बात हो गयी
अन्ना जी जो पधारे करामात हो गयी!!
.............. (प्रवेश गौरी 'नमन')


अन्ना जी

भारत वासी थे बे-सहारे अन्ना जी!
धन्यवाद् जो आप पधारे अन्ना जी!
राष्ट्रहित में जो लोकपाल बिल लाये हो
फैले हैं मन में उजियारे, अन्ना जी!
अब जनता अपने हाथों इन्साफ करे,
राजा है गद्दार, हमारे अन्ना जी!
नेताओं की चाल डरावा है कोरा
मरता साँप सदा फुफकारे अन्ना जी!
'नमन' आपको, मातृभूमि के जननायक,
सत्य, अहिंसा के रखवारे अन्ना जी!
-----(प्रवेश गौरी 'नमन')


आव नहीं, ताव नहीं

आव  नहीं, ताव नहीं, मोल नहीं, भाव नहीं
बस थोड़ा मस्का लगाया, मिल जाएगी!
एक बार मिली पाँच साल बैठ राज करूँ
नेता सोचे मेरी किस्मत खिल जाएगी
कुर्सी पे कब्ज़ा हो सत्ता हाथ में हो मेरे
जैसे भी पिलाऊंगा मैं वैसी पिल जाएगी
पर अब अन्ना जी की तुझको चुनौती है ये
भ्रष्टाचारी तेरी सारी नींव हिल जाएगी!!!
.....................(प्रवेश गौरी 'नमन')

मिटाने तानाशाही

तानाशाही, नौकरशाही, भ्रष्ट और घूसखौर
संसद पर रहता सदा, इन लोगों का जोर
इन लोगों का जोर, शोर मत करना भैया
न्याय खड़ा कर जोड़, भ्रष्टों की ता-थैया
जनता हो मजबूर, चली दिल्ली की राही
जन लोकपाल बिल से मिटाने तानाशाही!
...........................(प्रवेश गौरी 'नमन')

अन्ना जी का बिल

पारित कैसे हो सके अन्ना जी का बिल
दल के दलदल में फंसा है दिल्ली का दिल
है दिल्ली का दिल, पेंच पे पेंच लगता
राजा चुप है, उसे दुलारे शाही माता
कोई इस संचार को कर दो संचारित
दिल्ली निज हित त्याग करे अन्ना बिल पारित!!
.................... (प्रवेश गौरी 'नमन')

उसको आँख दिखाए

जिसके एक इशारे पे, जागा पूरा आवाम
दिल्ली खुलकर लगा रही, अन्ना पर इल्ज़ाम
अन्ना  पर इल्ज़ाम, कहे करता मनमानी
सरकारी बिल लेने में, है क्या नादानी?
कुर्सी के मद चूर, बात न समझ में इसके
उसको आँख दिखाए, सारी जनता संग जिसके!
......................(प्रवेश गौरी 'नमन')

शायरी



तेरी मीठी याद में करता हूँ शायरी!
तेरी दाद की इमदाद में करता हूँ शायरी!

मैं रिंद हूँ

मैं रिंद हूँ , तेरी आँखें हैं मेरा पैमाना
तेरे होठों की सुराही, बदन का मयखाना
मुझसे मत पूछ, दीवाने कहाँ पे रहता है
मैं हूँ पागल, तेरा दिल है मेरा पागलखाना
...............प्रवेश गौरी 'नमन'