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इस बज़्म-ए-मयकदा में वो बात हो ही जाए!
रहम-ओ-करम-ए-साक़ी इस रात हो ही जाए!!
मुझे तेरी आरजू है, तुझे मेरी जुस्तज़ू है,
अब इसमें ही भला है, मुलाकात हो ही जाए!!
तुझे हुस्न ने संवारा, तुझे इश्क से सजा दूँ,
ये पूरी आरजू-ए-ज़ज्बात हो ही जाए!
तेरी आँखों के रस्ते से तेरे दिल में उतर जाऊँ,
दिल तेरा मेरे दिल का हमजात हो ही जाए!
मेरे होंट कह रहे हैं, तेरे लब की चुभन ले लूँ,
ये नाम 'नमन' मेरे सौगात हो ही जाए!!
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-प्रवेश गौरी 'नमन'
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बुधवार, 25 अप्रैल 2012
वो बात हो ही जाए / Woh Baat Ho Hi Jaye
सोमवार, 23 अप्रैल 2012
उन्वान क्या रखोगे / Unvaan Kya Rakhoge
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उन्वान क्या रखोगे रूदाद - ए - मुहब्बत का!
कुछ उनकी शरारत का, कुछ मेरी शराफत का!!
ये इन्द्रधनुष क्या है, बस इस में रंग भरा है,
हम ख़ाक-नसीनों के अफसाना-ए-उल्फत का!
इस शहर के बासिन्दे पत्थर के बुत जो होते,
फिर किसका चलन होता, नफ़रत का कि उल्फत का!
मैं अपने चश्म-ए-तर से दीदार-ए-हुस्न करता,
लेकिन मैं मुन्तजिर था बस तेरी इज़ाजत का!
इस रूह ने बदला है एक और नया पहरन,
क्या वक़्त आ गया है 'नमन' कि कयामत का??
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प्रवेश गौरी 'नमन'
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उन्वान क्या रखोगे रूदाद - ए - मुहब्बत का!
कुछ उनकी शरारत का, कुछ मेरी शराफत का!!
ये इन्द्रधनुष क्या है, बस इस में रंग भरा है,
हम ख़ाक-नसीनों के अफसाना-ए-उल्फत का!
इस शहर के बासिन्दे पत्थर के बुत जो होते,
फिर किसका चलन होता, नफ़रत का कि उल्फत का!
मैं अपने चश्म-ए-तर से दीदार-ए-हुस्न करता,
लेकिन मैं मुन्तजिर था बस तेरी इज़ाजत का!
इस रूह ने बदला है एक और नया पहरन,
क्या वक़्त आ गया है 'नमन' कि कयामत का??
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प्रवेश गौरी 'नमन'
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
सब माया है/Sab Maya Hai
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या तो मैं पागल हूँ या शख्स यहाँ भरमाया है!
दुनिया कहती प्यार हुआ है, मैं कहता सब माया है!!
सुबह की जो लालिमा है बस सूरज के नाम न कर,
जुगनू बन कर मैंने खुद को सारी रात जलाया है!
यूँ ही नहीं कोई आया है साकी तेरी चौखट पे,
होशमंद दुनिया में जाकर सबने धोखा खाया है!
एक परिंदा मेरे दिल का भरता था परवाज़ कई,
देख हवा में फैले विष को अपना पर कटवाया है!
आज़ फैसला होगा मेरे हुनर-ए-संग-तराशी का,
'नमन' मेरी महफ़िल के भीतर वो पत्थर-दिल आया है!!
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-प्रवेश गौरी 'नमन'
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या तो मैं पागल हूँ या शख्स यहाँ भरमाया है!
दुनिया कहती प्यार हुआ है, मैं कहता सब माया है!!
सुबह की जो लालिमा है बस सूरज के नाम न कर,
जुगनू बन कर मैंने खुद को सारी रात जलाया है!
यूँ ही नहीं कोई आया है साकी तेरी चौखट पे,
होशमंद दुनिया में जाकर सबने धोखा खाया है!
एक परिंदा मेरे दिल का भरता था परवाज़ कई,
देख हवा में फैले विष को अपना पर कटवाया है!
आज़ फैसला होगा मेरे हुनर-ए-संग-तराशी का,
'नमन' मेरी महफ़िल के भीतर वो पत्थर-दिल आया है!!
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-प्रवेश गौरी 'नमन'
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