शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

Rubaaiyan / रुबाइयाँ



..............रुबाइयाँ.........


श्रद्धा की गंगा, प्रेम की कालिंदी है,
भारत के भाल की चमकती बिंदी है!
जो एकता के सूत्र में बांधे है हमें,
वह भाषा कोई और नहीं हिंदी है!!
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मस्तक पे लगे पूजा के चंदंन की तरह,
अधरों पे छपे प्रिया के चुम्बन की तरह!
क्या खूब सजी आज हिंद की दुल्हन,
हिंदी लगे सुहाग के कंगन की तरह!!
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हिंदी ब्रज के गाँव की एक गौरी है,
हिंदी माता यशोदा की लौरी है!
प्रेमचंद की है सादगी हिंदी,
गाँव की धनिया, किसान होरी है!!

.......................(प्रवेश गौरी 'नमन')

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