या तो मैं पागल हूँ या हर शख्स यहाँ भरमाया है!
दुनिया कहती-प्यार हुआ है, मैं कहता-सब माया है!!
सुबह की जो लालिमा है, बस सूरज के नाम न कर,
जुगनू बन कर मैंने ख़ुद को सारी रात जलाया है!
जीवन को रस्ते की तरह जी, बढ़ता चल, बढ़ता चल,
जितना कुछ पीछे खोया है, उतना आगे पाया है!
यूँ ही नहीं कोई आया है साकी तेरी चौखट पे,
होशमंद दुनिया में जाकर सबने धोखा खाया है!
एक परिंदा मेरे दिल का भरता था परवाज़ कई,
देख हवा में फैले विष को अपना पर कटवाया है!
तुझको सदा दिखाई देगी मक्कारी उन आँखों में,
जज़बातों का सौदा करके जिसने महल बनाया है!
आज़ फैसला होगा मेरे हुनर-ए-संग-तराशी का,
'नमन' मेरी महफ़िल के भीतर वो पत्थर-दिल आया है!!
.........................-प्रवेश गौरी 'नमन'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें