.....
.....
इस बज़्म-ए-मयकदा में वो बात हो ही जाए!
रहम-ओ-करम-ए-साक़ी इस रात हो ही जाए!!
मुझे तेरी आरजू है, तुझे मेरी जुस्तज़ू है,
अब इसमें ही भला है, मुलाकात हो ही जाए!!
तुझे हुस्न ने संवारा, तुझे इश्क से सजा दूँ,
ये पूरी आरजू-ए-ज़ज्बात हो ही जाए!
तेरी आँखों के रस्ते से तेरे दिल में उतर जाऊँ,
दिल तेरा मेरे दिल का हमजात हो ही जाए!
मेरे होंट कह रहे हैं, तेरे लब की चुभन ले लूँ,
ये नाम 'नमन' मेरे सौगात हो ही जाए!!
.....
-प्रवेश गौरी 'नमन'
.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें