सोमवार, 23 अप्रैल 2012

उन्वान क्या रखोगे / Unvaan Kya Rakhoge

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उन्वान क्या रखोगे रूदाद - ए - मुहब्बत का!
कुछ उनकी शरारत का, कुछ मेरी शराफत का!!
ये इन्द्रधनुष क्या है, बस इस में रंग भरा है,
हम ख़ाक-नसीनों के अफसाना-ए-उल्फत का!
इस शहर के बासिन्दे पत्थर के बुत जो होते,
फिर किसका चलन होता, नफ़रत का कि उल्फत का!
मैं अपने चश्म-ए-तर से दीदार-ए-हुस्न करता,
लेकिन मैं मुन्तजिर था बस तेरी इज़ाजत का!
इस रूह ने बदला है एक और नया पहरन,
क्या वक़्त आ गया है 'नमन' कि कयामत का??
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प्रवेश गौरी 'नमन'

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