मंगलवार, 8 नवंबर 2011

एक झलक / Ek Jhalak

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देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

वक्ष गिरी मुख चन्द्र, केश बन गए थे बदरी,
मुस्कान मंद स्वच्छंद छवि, आँखें कजरी!
कुछ डरी-डरी,ज्यों यौवन-गगरी,
जाए न छलक, जाए न छलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

आई नज़र पल-भर को जो वो कमर-कुमारी,
धड़कन धड़की धड़क, खिली ह्रदय-फुलवारी!
भर ठंडी आह, आह बोली,
कहाँ लोप रही वो आज़ तलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

अंग-अंग अंगड़ाई के बिन ही अंगड़ाता,
अंग-अंग स्वच्छंद भला किसको नहीं भाता!
अंग-अंग इंगित करता,
हर-एक के सीने में दलक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

मंद पवन में मंद-मंद चुनरी लहरा कर,
चली गई पल में, ह्रदय में टीस उठा कर!
उससे मिलने की ह्रदय को,
अब हर पल रहे लगी ललक!
देखता रहा अपलक!
प्रिया की एक झलक!!

(कविता संग्रह "प्रथम-प्रेम पाती" से)

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