वो,
जो रहती है
हर पल
मेरे पास,
मेरी साँसों में,
मेरी धड़कन में,
मेरे सपनों में,
मेरे दिल में,
मेरी आहों में,
मेरे मन में!
मैं,
जो ढूंढ़ता हूँ
हर पल
कहीं दूर,
गावों में,
गलियों में,
गुलशन में,
कलियों में,
पनघट पे,
सखियों में!
वो,
जो बसी है
मुझ में ही!
मैं
अनजान
उसे ढूंढता हूँ
भटकता भी हूँ
ठीक,
एक मृग की तरह!
आख़िर,
क्यों न
भटकता रहूँ!
वो,
जो है
मेरी कस्तूरी!!
जो रहती है
हर पल
मेरे पास,
मेरी साँसों में,
मेरी धड़कन में,
मेरे सपनों में,
मेरे दिल में,
मेरी आहों में,
मेरे मन में!
मैं,
जो ढूंढ़ता हूँ
हर पल
कहीं दूर,
गावों में,
गलियों में,
गुलशन में,
कलियों में,
पनघट पे,
सखियों में!
वो,
जो बसी है
मुझ में ही!
मैं
अनजान
उसे ढूंढता हूँ
भटकता भी हूँ
ठीक,
एक मृग की तरह!
आख़िर,
क्यों न
भटकता रहूँ!
वो,
जो है
मेरी कस्तूरी!!
धन्यवाद्, संजय भास्कर जी!
जवाब देंहटाएंआपकी मुस्कराहट को सलाम!
आपके लिंक पर शीघ्र दौरा करूंगा.....
achchi kavita hai namanji......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्, संदीप हरियाणवी जी.......
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